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“संघर्ष की ज्वाला: 12 नवंबर 2014 उत्तराखंड SC-ST शिक्षक संगठन की ऐतिहासिक विरासत और नई राह”

By damuwadhungalive

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2007 में मदन शिल्पकार, रमेश चन्द्रा, प्रमोद चौधरी, भारत भूषण साह और दिनेश टम्टा जैसे दूरदर्शी व्यक्तित्वों ने उत्तराखंड में अनुसूचित जाति–जनजाति के कर्मचारियों के पहले संगठन की नींव रखी।
उनकी दूरगामी सोच ने एक ऐसा मंच तैयार किया जिसने शिक्षा जगत के हाशिए पर खड़े कर्मचारियों को एकता, आत्मसम्मान और अधिकार की दिशा दी।2012 में सोहन लाल के नेतृत्व में इस आंदोलन को नई दिशा मिली। 12 नवंबर 2014 को देहरादून में संगठन का पहला प्रांतीय अधिवेशन ऐतिहासिक रूप से आयोजित हुआ, जिसमें पाँच हजार से अधिक शिक्षक, शिक्षिकाएं और कर्मचारी शामिल हुए।
उस दिन का जोश और एकजुटता आज भी उत्तराखंड के शिक्षक आंदोलन की प्रेरणा है। मुख्यमंत्री हरीश रावत के अप्रत्याशित आगमन ने इस सभा को एक प्रतीकात्मक क्षण में बदल दिया — यही वह पल था जब संगठन ने अपनी शक्ति और प्रभाव का परिचय दिया।आज यही संगठन UKTA (Uttarakhand SC-ST Teachers Association) के रूप में राज्य का सबसे बड़ा और सशक्त मंच बन चुका है।संघर्ष के सुनहरे अध्यायसोहन लाल के नेतृत्व में संगठन ने संघर्ष की एक मजबूत परंपरा गढ़ी।
1 जनवरी 2015 को ‘अन्याय दिवस’ मनाकर शिक्षकों की आवाज पूरे प्रदेश में गूंजी।
24 जून 2015 को देहरादून में 101 शिक्षकों ने प्रमोशन में आरक्षण की बहाली और इरसाद हुसैन कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग को लेकर ऐतिहासिक मूंद-म आंदोलन किया।यह संघर्ष संगठन की जीवंतता और एकता का प्रतीक था — एक ऐसा दौर जिसे आज भी लोग भावनाओं के साथ याद करते हैं।संगठन की आत्मा: सेवा, संघर्ष और स्वाभिमानयह संगठन केवल एक मंच नहीं, बल्कि डॉ. भीमराव आंबेडकर के सामाजिक न्याय आंदोलन की शैक्षिक अभिव्यक्ति है।
यह न केवल अधिकारों की लड़ाई का प्रतीक है, बल्कि आत्मसम्मान, एकता और वैचारिक नेतृत्व की भावना को भी जीवित रखता है।“संगठन का मतलब पद नहीं, उद्देश्य है — परिवर्तन।”इसी उद्देश्य के लिए हजारों साथियों ने समय, साधन और जीवन समर्पित किया है।आज की जरूरत: नई ऊर्जा, नई दिशाजब सामाजिक न्याय की नीतियाँ निरंतर चुनौतियों के घेरे में हैं, तब संगठन को फिर से अपने संघर्षशील स्वरूप में लौटना होगा।
पुराना अनुभव और नई पीढ़ी की सोच मिलकर ही आगामी दिशा तय कर सकते हैं।
इतिहास की स्मृतियाँ तब ही सार्थक होती हैं जब वे भविष्य की रणनीति को जन्म देती हैं।भविष्य की रणनीति: संघर्ष से नीति तकआरक्षण नीति पर पुनर्विचार – प्रमोशन में आरक्षण, बैकलॉग भर्ती और संवैधानिक अधिकारों पर ठोस राज्यव्यापी आंदोलन।संगठनात्मक एकता और पारदर्शिता – सभी जिलों और ब्लॉकों में डिजिटल नेटवर्क और पारदर्शी संवाद प्रणाली का निर्माण।महिला शिक्षक सशक्तिकरण विंग – महिला शिक्षिकाओं की सक्रिय भागीदारी और नेतृत्व सुनिश्चित करना।नीतिगत विमर्श और संवाद – सरकार और विभागों के साथ सतत वैचारिक संवाद तथा दबाव तंत्र को मजबूत बनाना।निष्कर्ष12 नवंबर 2014 केवल एक तारीख नहीं, बल्कि संगठन के चेतन इतिहास का वह अध्याय है जिसने उसे जनता के बीच पहचान दी।
यह दिन संगठन के साहस, एकजुटता और आत्मसम्मान का प्रतीक है।“संगठन का इतिहास संघर्ष से लिखा गया था,
और भविष्य भी संघर्ष की कलम से ही लिखा जाएगा।”आइए, उन अग्रदूतों को नमन करें जिन्होंने इस आंदोलन की नींव रखी थी, और मिलकर फिर से वह ज्वाला प्रज्वलित करें जो समानता, न्याय और स्वाभिमान की राह दिखाती है।

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